बिहार विधानसभा चुनावों में जब लोकजनशक्ति पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताया तथा कहा था कि वह बिहार में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाने के लिए काम करेंगे. अब जब बिहार विधानसभा चुनावों के परिणाम सामने आ गए हैं तथा तेजस्वी यादव की तमाम कोशिशों के बाद भी NDA गठबंधन अपनी सरकार बचाने में सफल रहा है, तब इस बात पर विचार करना जरूरी हो जाता है कि खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताने वाले LJP के चिराग पासवान क्या वास्तव में इस भूमिका को निभा पाए?
अगर चुनाव परिणामों को देखें तो हम पाएंगे कि हां! चिराग पासवान ने बिहार में पीएम मोदी के हनुमान की भूमिका पूरी तरह से निभाई है. बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने अपनी पार्टी एलजेपी को भले ही शहीद करवा दिया लेकिन उन्होंने NDA गठबंधन में बीजेपी की बड़ा भाई बनने की मुराद पूरी कर दी. चिराग पासवान की एलजेपी ने एक तरफ जहां एंटी इनकंबैंसी वोटों को तेजस्वी यादव नीत विपक्षी महागठबंधन में जाने से रोका, तो वहीं दो दर्जन से अधिक सीटों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू को सीधा नुकसान पहुंचाया.
हालांकि, इस पूरे खेल में एलजेपी को खुद अपने हाथ कुछ नहीं लगा. उसे सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई लेकिन बीजेपी का काम जरूर आसान कर दिया. जिस तरह LJP ने जदयू को नुकसान पहुंचाया तथा उसे राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी बना दिया, उससे नीतीश कुमार तिलमिला तो जरूर रहे होंगे. बीजेपी बाहर से भले ही कुछ भी कहे लेकिन इससे बीजेपी नेता अंदरखाने जरूर खुश रहे होंगे. अब एनडीए के साथ एलजेपी रहेगी या नहीं, ये केंद्र सरकार की जल्द होने वाली कैबिनेट फेरबदल में तय हो जाएगा.
चुनाव परिणामों को देखें तो पूरे चुनाव में चिराग की एलजेपी ने बीजेपी को बहुत ही कम, लेकिन जेडीयू को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. लोक जनशक्ति पार्टी ने जेडीयू की सीटों पर उम्मीदवार उतारे. इसी दौरान बड़ी संख्या में बीजेपी के बागी नेता भी एलजेपी के टिकट पर मैदान में उतरे. तब यह भी चर्चा थी कि बीजेपी ने एंटी इनकंबैंसी वोटों को विपक्षी खेमे में जाने से रोकने के लिए यह रणनीति बनाई है. चुनाव के नतीजे बताते हैं कि बीजेपी की यह रणनीति चुनाव मैदान में काम आई.
बीजेपी 76 सीटें हासिल कर गठबंधन में बड़ा भाई की भूमिका हासिल करने में कामयाब रही. वहीं नीतीश कुमार की जेडीयू न सिर्फ एनडीए में छोटे भाई की भूमिका में आ गई, बल्कि बिहार में बीजेपी और आरजेडी के बाद तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. पूरे चुनावी अभियान में चिराग पासवान की ज्यादा दिलचस्पी महागठबंधन के सीएम चेहरे तेजस्वी यादव पर हमला बोलने से ज्यादा नीतीश कुमार पर व्यक्तिगत कमेंट करने में रही. वहीं, बीजेपी ने सीएम के रूप में नीतीश कुमार का बचाव किया.
बीजेपी पूरे चुनाव प्रचार के दौरान ताल ठोंककर ये कहती रही कि अगर नीतीश की JDU भगवा पार्टी की तुलना में कम सीटें भी हासिल करती है , तो भी जदयू प्रमुख नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे. बीजेपी चीफ जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह, बिहार चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव सहित बीजेपी के सभी बड़े नेता ये कहते रहे कि चुनाव में JDU को बीजेपी की सीटें कितनी भी कम मिलें लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे. अब देखना है कि क्या बिहार चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी अपनी बात पर कायम रहती है या कुछ और फैसले लेगी. हालाँकि चुनाव परिणामों के बाद भी बीजेपी की तरफ से साफ़ कर दिया गया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे.
बहरहाल, चिराग पासवान ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ही सही लेकिन ये साबित कर दिया है कि वह राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभर सकते हैं. इस चुनाव में उन्होंने बिहार में नीतीश कुमार को बीजेपी का छोटा साझीदार बना दिया है. आने वाले दिनों में राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में इसका एक व्यापक प्रभाव होगा. चिराग ने बिहार में अपनी पार्टी की कुर्बानी दी है तथा बिहार में बीजेपी को नीतीश का बड़ा भाई दिया है. बीजेपी भी हमेशा से यही चाहती रही है लेकिन अब चिराग के सहारे वह ऐसा करने में सफल रही है.
लेकिन अब इसके बाद असली सवाल चिराग पासवान के भविष्य को ले कर है. चिराग अपने स्वर्गीय पिता रामविलास पासवान की जगह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होना चाहते हैं. इसके अलावा वह अपनी मां को दिवंगत पिता की जगह राज्यसभा भेजना चाहते हैं. लेकिन इस समय जेडीयू एलजेपी से बेहद खफा है. इसलिए सवाल उठता है कि क्या बीजेपी जेडीयू को नाराज कर चिराग को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह देगी? और अगर जेडीयू के दवाब में चिराग को केंद्रीय मंत्री नहीं भी बनाया गया तो भी बीजेपी किसी न किसी तरह से चिराग की राजनीति को स्वर्णिम बनाकर उनका इनाम अवश्य देगी क्योंकि बिहार में चिराग पीएम मोदी के असली हनुमान साबित हुए हैं.